मुझे वृन्दावन बुला लो,
मुझे वृन्दावन बसा लो,
हरिदास के बिहारी,
स्वामी हरिदास के बिहारी,
श्री हरिदास के बिहारी।।
प्रियालाल राजे जहाँ,
तहाँ वृन्दावन जान,
वृन्दावन तज एक पग,
जाए ना रसिक सुजान,
चरणों में चित लगा लो,
मुझे वृन्दावन बुला लों,
श्री हरिदास के बिहारी,
स्वामी हरिदास के बिहारी,
श्री हरिदास के बिहारी।।
जो सुख वृंदा विपिन में,
अंत कहू सो नाय,
बैकुंठहू फीको पड़ो,
ब्रज जुबती ललचाए,
मुझे रसिको में मिला लो,
मुझे वृन्दावन बुला लों,
श्री हरिदास के बिहारी,
स्वामी हरिदास के बिहारी,
श्री हरिदास के बिहारी।।
वृन्दावन रस भूमि में,
रस सागर लहराए,
श्री हरिदासी लाढ सो,
बरसत रंग अघाय,
जग जाल से छुड़ा लो,
मुझे वृन्दावन बुला लों,
श्री हरिदास के बिहारी,
स्वामी हरिदास के बिहारी,
श्री हरिदास के बिहारी।।
रसिक अनन्य हरिदास जु,
गायो नित्य विहार,
चिवाहू में दूर किए
दुःख निषेद जंजाल,
पागल मुझे बना लो,
मुझे वृन्दावन बुला लों,
श्री हरिदास के बिहारी,
स्वामी हरिदास के बिहारी,
श्री हरिदास के बिहारी।।
मुझे वृन्दावन बुला लो,
मुझे वृन्दावन बसा लो,
हरिदास के बिहारी,
स्वामी हरिदास के बिहारी,
श्री हरिदास के बिहारी।।
स्वर – बाबा श्री रसिका पागल महाराज।