जीवन खतम हुआ तो,
जीने का ढंग आया,
जब शम्मा बुझ गयी तो,
महफ़िल में रंग आया,
जीवन ख़त्म हुआ तो,
जीने का ढंग आया।।
तर्ज – मिलती है जिंदगी में।
मन की मशीनरी ने,
तब चलना ठीक सीखा,
जब इस बूढ़े तन के,
पुर्जे में जंग आया,
जीवन ख़त्म हुआ तो,
जीने का ढंग आया।।
गाड़ी चली गई तब,
घर से चला मुसाफिर,
मायूस हाथ मलता,
वापस वो रंग आया,
जीवन ख़त्म हुआ तो,
जीने का ढंग आया।।
फुर्सत के वक़्त में फिर,
सुमिरन का वक़्त आया,
उस वक़्त वक़्त माँगा,
जब वक़्त तंग आया,
जीवन ख़त्म हुआ तो,
जीने का ढंग आया।।
जीवन खतम हुआ तो,
जीने का ढंग आया,
जब शम्मा बुझ गयी तो,
महफ़िल में रंग आया,
जीवन ख़त्म हुआ तो,
जीने का ढंग आया।।
स्वर – श्री देवेन्द्र जी महाराज।